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Showing posts from October, 2020

Yaade..!

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    यादे..! बहुत कुछ याद आता है, वो लम्हे खूबसूरत थे, बातें जो अनकही सी थी, वो नजरें जो झुकी सी थी, खुला सा आसमां भी था, बिन वजह मुस्कुराना  था, खुशियों का मौसम था, हर दिन नया किस्सा नया सपना बनाना था, हाथों को थाम कर यूं ही दौड़ लगाना था, किस्मत की लकीरों से खुशियों को चुराना था, बिन बोले समझना था, कभी मदहोश यह मन था, शरारती बस भरी सी थी, जिम्मेदारियों की फिक्र ना थी, वह यारों का जमाना था, बंद मुट्ठी में खजाना था, बहुत कुछ याद आता है, वो लम्हे खूबसूरत थे। Shaikh Shabana

Akhir kab tak ?...!

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आख़िर कब तक ?...! मैं बाहर जारही हूं , माँ तू घबराना नही, अपनी गलती तू समझना नहीं, यह सोच लेना अगर देर हो गई, तेरी बेटी भेड़ियों का शिकार हो गई। तू ने भेजा था दुपट्टे की लाज में मुझको बाहर, दुपट्टा ही  खींचा और बदनाम हो गई। जलिमो ने मारा और जुबां भी मेरी खींच ली, कभी काटा तो कभी मेरी हड्डी भी तोड़ दी। मैं चिल्लाती रहीं, खामोश कराया गया मुझे, बेसुध बना के बाहर फेका गया मुझे। कुछ ना हुआ मेरा में वहीं पड़ी रही, दूसरे दिन अखबारों में छपी रही। हर दिन की यही कहानी कह कर पन्ने पलट दिए, चंद दिन याद कर शमा जलाते रहे, हर दिन का है यह किस्सा केह कर हस्ते रहे, मेरे हालात का मज़ाक यह बनाते रहे। यहां फर्क किसको पड़ता हैं। हर दिन बस इश्तहार छपता है, हर दिन बस यही डर से जीती है लड़कियां, शिकार नया और ज़िंदा जलती है लड़कियां। बस पूछना यही, कब तक अब पट्टी बंधेगी, और कितनी लड़कियां जलेगी, कब तक गंदी नालियों में लाशे मिलेंगी। आख़िर कब तक और निर्भया बनेगी। Shaikh Shabana

Lalchi Rajniti..!

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हर तरफ यह बस शोर ही मचाया है, तूफानों का तुमने कोनसा रास्ता बनाया है, विकास के बस तुमने नारे लगाए है, गरीबों को आज भी सड़कों पर सुलाया है। इलेक्शन के वक़्त अपना चेहरा दिखाते हो, घर घर रिश्वत दे कर आते हो, झूठी कसमें झूटे वादे सड़कों पर चिल्लाते हो, छल से पूरी रस्सी आख़िर क्यों बनाते हो। बन कर नेता अपना घर बस बनाया है, हम से जीत कर हमको ही झुटलाया है, कई उम्मीदों से हमने तुमको जीताया है, तिज़ोरी खुदकी भरते है, और गरीबों को बेईमान बताया है। कभी जाति कभी भेद से हर दिन लड़ाते हो, करते रहते मंदिर मस्ज़िद तुम अपना धर्म छुपाते हो, आंखें मूंद कर तुम पर विश्वास हम जताते है, नफ़रत डाल कर लोगो में, तुम राजनीति खेल जाते हो। मेहंगाई पे मेहंगाई बढ़ती जाती है, किसानों को आज तक ना मिला इंसाफ कभी, मौत की खबर सुनकर नजरअंदाज कर जाते है, भूका जागे रात भर, यह सुकून से पेट भर सो जाते हैं। Shaikh Shabana