Akhir kab tak ?...!



आख़िर कब तक ?...!

मैं बाहर जारही हूं , माँ तू घबराना नही,
अपनी गलती तू समझना नहीं,
यह सोच लेना अगर देर हो गई,
तेरी बेटी भेड़ियों का शिकार हो गई।

तू ने भेजा था दुपट्टे की लाज में मुझको बाहर,
दुपट्टा ही  खींचा और बदनाम हो गई।
जलिमो ने मारा और जुबां भी मेरी खींच ली,
कभी काटा तो कभी मेरी हड्डी भी तोड़ दी।

मैं चिल्लाती रहीं, खामोश कराया गया मुझे,
बेसुध बना के बाहर फेका गया मुझे।
कुछ ना हुआ मेरा में वहीं पड़ी रही,
दूसरे दिन अखबारों में छपी रही।

हर दिन की यही कहानी कह कर पन्ने पलट दिए,
चंद दिन याद कर शमा जलाते रहे,
हर दिन का है यह किस्सा केह कर हस्ते रहे,
मेरे हालात का मज़ाक यह बनाते रहे।

यहां फर्क किसको पड़ता हैं।
हर दिन बस इश्तहार छपता है,
हर दिन बस यही डर से जीती है लड़कियां,
शिकार नया और ज़िंदा जलती है लड़कियां।

बस पूछना यही, कब तक अब पट्टी बंधेगी,
और कितनी लड़कियां जलेगी,
कब तक गंदी नालियों में लाशे मिलेंगी।
आख़िर कब तक और निर्भया बनेगी।

Shaikh Shabana







Comments

Post a Comment

Popular posts from this blog

Aagaze Sham

Mere Humsafar ❤️

Raat ki Uljhan!