Mai or yeh baarishe...!

मैं और यह बारिशे...!

इन बादलों ने कुछ कहा मुझे,
शौर मचा कर डराया मुझे,
यह हवा इतनी तेज खिड़कियां हिला रही,
लगता है जैसे कोई बुलाया मुझे।

बाहर निकलते ही एक बुंद आ गिरी,
यह ओस की साज़िश लगी मुझे,
तुफान चीख रहा हो जैसे,
यह बुंदे खींच रही मुझे,

इन कतरों सा बरस रही हुं मैं,
नदियों से सागर बन रही हुं मैं,
इन बारिशों में भीग रही हुं मैं,
सब पराया यह बुंद अपनी लगी मुझे।

आसमान के रंगों को छुपाया  तुमने,
सुरज को ठंडा बनाया तुमने,
हर एक की प्यास बुझाया तुमने,
इन भीनी भीनी खुशबू से मिलाया मुझे।

कड़कती आवाज से तेरे,दिल धड़कता है मेरा,
ऐ बारिश तुझे खत लिखने का मन करता है मेरा,
तु ने  मुझे कुछ ऐसा भिगाया,
खुदसे हर बार मिलाया मुझे।

मन करता है तेरी तरह बरसु,
आंखों से नहीं,बस यूं ही बेहिसाब बरसु,
तेरे आने का इंतजार रहता है मुझे
ऐ बारिश तुझ से बे इंतेहा इश्क़  है मुझे।
शबाना शेख











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