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Kabhi to pucho..?

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        कभी  तो पूछो..?? गमों को छुपा कर मुस्कराती सी हूं मै, आंसू के छलकने से घबराती सी हूं मै, उदासियो से जुड़ा है मेरा नाता, ये जहर के घूंट रोज़ पीती सी हूं मै। मैंने अपने निगाहों को खुश्क पाया है, भीड़ मे खुद को अक्सर तन्हा ही पाया है, होंठो पे मुस्कुराहट और आंखों से अश्क बहाया है, कभी तो पूछो ऐसा किसने बनाया है। हर रोज़ लड़ती हूं खुद से,  कहते कहते रुकती हूं खुद से, हारी सी जिंदगी है तू, आईने को देख कहती हूं खुद से। ये रोज़ की जंगे,ये रोज़ के कतरे, नाराज़ सी जिंदगी , बिना मंज़िल के रस्ते, कभी तो पूछो मै उदास सी क्यों लगती हूं, कभी तो पूछो मै इतना क्यों हस्ती हूं।  Shaikh Shabana

Jahez Ab nahi....!

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जहेज़ के नाम पर बहु आग में उतारी है, हमारे इस मुल्क में अब तक यह जुल्म जारी है, कदम बाहर कैसे निकालूं, घर की इज्जत की जंजीर बहुत भारी है। मां-बाप के जिगर के टुकड़े को लेते हैं, कहते हैं हमें जेवर नहीं मिला, हम जिंदगी भर जले यहां, पर हमारा मुकद्दर नहीं मिला। शादियां जेहमत कर गई है लालच जहेज़ की, बेटियों को तबाह कर गई लालच जहेज़ की, एक बाप की जिंदगी की कमाई को लाकर, कहते हैं "क्या लाई"लालच जहेज़ की। ज्यादा जो ले आई तो सर पर बिठा लिया, कम होते ही बाहर भगा दिया, लेकर जो निकली जिस्म की मिट्टी मैं बाहर, जहेज़ के लालची ने सारे आम कत्ल कर दिया। जहेज़ के नाम पर मौत अब कम नहीं, कभी अर्थी कभी डूबी वही, चलो जुट कर एक हो जाएं, जहेज़ के नाम पर आवाज उठाएं। बताए इन लालची लोगो को हम, ये बेटियां किसी से कम नहीं, पहचान अपनी आला रख कर, कहे हम एक साथ जहेज़ अब नही। photo credit  Syed Fahim Haidar Shaikh Shabana