Kabhi to pucho..?
कभी तो पूछो..??
गमों को छुपा कर मुस्कराती सी हूं मै,
आंसू के छलकने से घबराती सी हूं मै,
उदासियो से जुड़ा है मेरा नाता,
ये जहर के घूंट रोज़ पीती सी हूं मै।
मैंने अपने निगाहों को खुश्क पाया है,
भीड़ मे खुद को अक्सर तन्हा ही पाया है,
होंठो पे मुस्कुराहट और आंखों से अश्क बहाया है,
कभी तो पूछो ऐसा किसने बनाया है।
हर रोज़ लड़ती हूं खुद से,
कहते कहते रुकती हूं खुद से,
हारी सी जिंदगी है तू,
आईने को देख कहती हूं खुद से।
ये रोज़ की जंगे,ये रोज़ के कतरे,
नाराज़ सी जिंदगी , बिना मंज़िल के रस्ते,
कभी तो पूछो मै उदास सी क्यों लगती हूं,
कभी तो पूछो मै इतना क्यों हस्ती हूं।
Shaikh Shabana
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