Jahez Ab nahi....!
जहेज़ के नाम पर बहु आग में उतारी है,
हमारे इस मुल्क में अब तक यह जुल्म जारी है,
कदम बाहर कैसे निकालूं,
घर की इज्जत की जंजीर बहुत भारी है।
मां-बाप के जिगर के टुकड़े को लेते हैं,
कहते हैं हमें जेवर नहीं मिला,
हम जिंदगी भर जले यहां,
पर हमारा मुकद्दर नहीं मिला।
शादियां जेहमत कर गई है लालच जहेज़ की,
बेटियों को तबाह कर गई लालच जहेज़ की,
एक बाप की जिंदगी की कमाई को लाकर,
कहते हैं "क्या लाई"लालच जहेज़ की।
ज्यादा जो ले आई तो सर पर बिठा लिया,
कम होते ही बाहर भगा दिया,
लेकर जो निकली जिस्म की मिट्टी मैं बाहर,
जहेज़ के लालची ने सारे आम कत्ल कर दिया।
जहेज़ के नाम पर मौत अब कम नहीं,
कभी अर्थी कभी डूबी वही,
चलो जुट कर एक हो जाएं,
जहेज़ के नाम पर आवाज उठाएं।
बताए इन लालची लोगो को हम,
ये बेटियां किसी से कम नहीं,
पहचान अपनी आला रख कर,
कहे हम एक साथ जहेज़ अब नही।
photo credit Syed Fahim Haidar
Shaikh Shabana
Nice poem
ReplyDeleteThanks
DeleteVery nice
ReplyDeleteBahot khub
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