Nadan e Ishq...!

 नादान ए इश्क़...!



एक इश्क़ जो नादान सा बेशुमार सा हुआ,

हां एक मुस्कुराहट जो मेरे दिल को कभी छुआ था,

फिल्मों को देखकर शायद हमने भी,

इश्क़ आंखों से शुरू किया था।


एक नजर जो ठहरी हुई सी थी मुझ पर,

कभी हमने भी दिन में बेवजह मुस्कुराया था,

किसी की मासूमियत उसके मोहब्बत को,

कभी पा लेने का जुनून जो बनाया था।


स्कूल उसकी मुलाकात की वजह बन गई,

जो बिना कहे रोज जाया जाता था,

देखकर मेरी बेताबी मेरी बेचैनी को,

मेरे दोस्तों ने जो साथ निभाया था।


एक दिन सोचा सब कह डालू,

मगर हिम्मत न जुटा पाया था,

बस उन्हें मैं देखता ही रहा,

ये यह सिलसिला यूं ही जारी था।


सब लगे थे इम्तिहान की तैयारियों में,

मैं बस खयालों में ही खोया रहता था,

एक दफा खत में दिल की बातें सब लिख डाला,

खत के इंतजार में अब रातों को जागा जाता था।


एग्जाम्स के दिनों में वह मेरे ही पीछे,

इश्क़ ने जो थोड़ा सा साथ निभाया था,

छुट्टियों ने बेचैनी से जकड़ा हुआ था मुझे,

वो दूर होने का जो डर सताया था।


घर के उसके परेशानियों ने शायद,

मेरे इंतजार को " ना " करवाया था,

मैं टूटा हुआ उदासियों को लिए,

अपने जज्बात संभाल ना पाया था।


उनकी मोहब्बत ने घेरा था इस तरह,

फिर भी इंतजार में कितना वक्त गवाया था,

उन नादानियों के दिनों ने कभी ,

मुझे टूटा फुटा शायर बनाया था।


Shaikh Shabana





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