Haseen thhe wo lamhat...!

हसीन थे वह लम्हात...!



खूबसूरत सी यादें, हसीन थे लम्हात,
कागज की कश्ती थी, और नन्हे से विचार,
एक मेरा यार था, और थी हमारी यारी,
हाथ थाम कर चल रहे थे, मस्तियां खूब सारी ।

किसी दिन किसी पर ऐतबार हो गया था,
एक अजनबी शख्स मेरा यार हो गया था,
वह पहली क्लास वह पहला दोस्त,
मेरी जिंदगी का पहला किताब हो गया था।

शुरुआती दिनों में, मैं उसके घर था जाता ,
शाम बीताएं, मैं वहां से आता ,
दोनों खिलौने कार चलाते,
एक दूसरे की कारों को हम खूब लड़ाते।

कार्टून की दुनिया हमने बनाई थी,
ख्वाब भी कुछ चंचल से बनाए थे,
वह क्रिकेट के खिलाड़ी को,
न्यूज़ पेपर से चुराए थे।

साथ में करते थे स्कूल की छुट्टी,
कभी-कभी स्कूल से भी भाग जाया करते थे,
खेल कूद कर बागों में,
कश्ती में पूरा दिन बिताया करते थे।

गांव की मजबूरियों के कारण होना पड़ा अलग हमें,
बिछड़ के अपने यार से हॉस्टल जाना पड़ा मुझे,
वह देखता रहा मुझे, एक ही निगाह से,
ठहरा हो जैसे अब भी वह पल, हमारी ही निगाह से।

अनोखी थी वह हमारी यारी,
अनोखा था वो मेरा यार,
मेरी हर ज़रूरत को ,
बे झिझक पूरा करता मेरा यार।

वो लम्हें बहोत याद आते है,
आंखे बंद करता हूं,शरारतें याद आते है,
देखता हूं अब जो उसको , सोचता हूं बस यही,
कितने अनमोल थे वह दिन,जो अब हमें याद आते है।


Shaikh Shabana

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