Takleefo Ki Wo Raate...!


तकलीफो की वो राते...!

एक साल तकलीफों की थी,
रात मेरी दर्द से गुजरती थी,
एक दफा दर्द उठा, माँ चौंक गई,
दर्द से तड़पती रही, वो रात करवट बदलती रही।

वह अजीब सा ही दर्द था,
आता तो तकलीफों के ही साथ में,
जब बात हद से बढ़ गई,
मां हॉस्पिटल ले गई।

डॉक्टर ने देखा मुझे,
इंजेक्शन लगा के कुछ टेस्ट कराया मुझे,
वह रात बहुत गहरी सी थी,
जब वार्ड में ले जाया गया मुझे।

इंजेक्शन का रिएक्शन हुआ,
हाथ सूझ कर इतना बडा हुआ,
कहने लगा डॉक्टर, मामला गंभीर है,
ठीक ना हुआ करना होगा ऑपरेशन है।

भाई केहने लगा मेरा ,
घबरा नहीं तुझे दूंगा ट्यूब मेरा,
खुश किस्मत से हाथ मेरा ठीक हुआ,
लगा जैसे कुछ बोझ हल्का हुआ मेरा।

अभी भी दर्द पेट है वहीं,
रिपोर्ट के अलावा कुछ ना हुआ मेरा,
हर टेस्ट में भुका ही रख देते,
चैन ना मिलता उन्हें तो दवाइयों की बॉटल थामा देते।

एक दफा ऑपरेशन के लिए लेजाया गया,
पूरे ५ घंटे इंतजार करके वापस कराया गया,
गुस्से मे तिलमिला के मै लाल हो गई,
अपने वार्ड मे आकर नाराज़ हो गई।

तनहा थी मै वह पर,
था कोई नहीं मेरे पास मे,
घर पर लगे थे ताले मेरे,
अम्मी थी बस हर वक्त साथ मेरे।

हमारा रात का खाना हॉस्पिटल में होता,
हर दिन नया पेशंट मरता,
देखा मैंने मरते हर रोज़ से,
डरने लगी फ़िर मैं भी मौत से।

मिलने तो आए सब पर कोई सहारा ना था,
परेशानियों से घिरा नज़ारा वो था,
कहने लगा फिर डॉक्टर तुम दवाइयों से ठीक हो जाओगी,
घबराओ नहीं तुम जल्द अपने घर जाओगी।

शबाना शेख

 

Thanks to Olga Kononenko for making this photo available freely on Unsplash

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