Mai Apne Gav jaraha hu...!
मैं अपने गाँव जा रहा हूँ।
मैं गरीब मजदूर हूँ।
रोज़ की कमाई,चंद रूपए लीए जा रहा हूँ।
बंद पड़े ये दिन,अब सताने लगे।
पेट कैसे भरें ये बताने लगे।
बहुत परेशानी से जा रहा हूँ।
मैं अपने गाँव जा रहा हूँ।
जवानी दे दी इस शहर को हमने।
लेकिन फरेब ना कीया कभी।
बग़ैर चप्पल नीकल गए हैं,लेकर मन में आशा।
मेरा घर है जहां, में जा रहा हूँ वहाँ।
हां! खाली हाथ जा रहा हूँ।
मैं अपने गांव जा रहा हूँ।
हकीकत कैसे बताऊँ, यहाँ क्या हो गया।
मैं घर से पैदल निकल गया।
मेरा एक बच्चा भुका मर गया।
इल्ज़ाम किस्को दू , अब इनतीकाम किस्से लू।
टुटी हुई सवारी लिए जा रहा हूँ ।
मैं अपने गाँव जा रहा हूँ।
मुझे जाने दो साहब, मुझे मारो नही।
मेरा परिवार है भुखा।
मैं बहुत दूर जा रहा हूँ।
बहुत से ख्वाब तोड़ जा रहा हूँ।
जिंदा नहीं, मैं मर कर भी जा रहा हूँ।
मैं अपने गाँव जा रहा हूँ।
शबाना शेख
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Mast and reality hai 🧡❤🔥🧡
ReplyDeleteYes,this poem today's Reality
DeleteThanks
Keep it up 👌
ReplyDeleteThanks
DeleteAatm nirbhar bharat,
ReplyDeleteJaha awaam aatm nirbhar h
Agr kisi ko jarurt h to wo khud govt h.
Well, keep it up 👍
Ha Har insan Khud govt Hai
DeleteThanks 😊
🔥🔥🔥bht behtareen likha h
ReplyDeleteShukriya 🥰
DeleteWell & good.. .👍
ReplyDeleteThank you
DeleteNice concept 👌 awesome lines dear
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