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Mere Humsafar ❤️

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            मेरे हमसफर...,। मेरे इस सफर में एक सफर है जुड़ गया, अजनबी सा एक शख्स मेरा हमसफ़र बन गया, उसकी खुशबू उसकी आहट है मेरी निगाहों में, मेरी सांसो पर आकर जो वो इस्तरह ठहेर गया, उसकी नजरों से ही तो मैं खूबसूरत लगती हूं, इस कदर वह मेरा जेरो जर बन गया, उसकी हर एक लफ्ज में मेरे लिए जादू है, मेरे दिल का वो जादूगर बन गया, मेरी हर बात को मान जाना उसका, मेरा हर लफ्ज़ उसका लफ्ज़ बन गया, मेरी अधूरी तन्हा सी जिंदगी में, मेरा शौहर खूबसूरत हमसफर बन गया। Shaikh Shabana .  

ये कौन है...?

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ये कौन है  बहुत शोर चल रहा है, जिधर देखो उधर खबर चल रहा है, मुद्दा क्यों उठाया गया यह सवाल किसी का नहीं, देखो जरा हर जगह धर्म का युद्ध चल रहा है। हमारी कमजोरी मालूम है इनको, कब उठेगी आवाज मालूम है इनको, आपस में इनको लड़ने ही दते हैं, अपना छुप के काम करना मालूम है इनको। देखो कोई तो आवाज उठाएगा, इनका यूं ही चलने दो हमारा क्या जाएगा, कुछ कहानी चलो सोच लेते हैं, वरना हाथ जोड़कर किस बात पर मुद्दा बनाया जाएगा। यह तो तालिबान है जिनको गुमराह करना है, कुछ बातें सामने कुछ राजदार करना है, खेल कर इनसे होने दो जो देख लेंगे, इनसे हकीकत का पन्ना एक बार फिर छुपाना है। जैसा हमने सोचा बस हो तो रहा है,  तुम्हारी कमजोरी हमें ताकतवर बना रहा है, कुछ ना हुआ और ना होगा हमारा कभी, यह उनका चेहरा चीख कर कह रहा है। तुम पर्दा हिजाब तो रहने दो, तुम अपनी यह चालबाज तो रहने दो, हमारा मज़हब और हमारी ताकत हिंदुस्तान है, तुम्हारा यह मजहब का कारोबार तो रहने दो। यह कौन है जो इल्जाम लगाते हैं, हिजाब के नाम पर लोगों को गुमराह कर जाते हैं, समझो लोगों चाले इनकी, जो मजहब के नाम पर सब को लड़ाते हैं। तुम हकीकत से दो-चार हो जाओ, क

Nadan e Ishq...!

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  नादान ए इश्क़...! एक इश्क़ जो नादान सा बेशुमार सा हुआ, हां एक मुस्कुराहट जो मेरे दिल को कभी छुआ था, फिल्मों को देखकर शायद हमने भी, इश्क़ आंखों से शुरू किया था। एक नजर जो ठहरी हुई सी थी मुझ पर, कभी हमने भी दिन में बेवजह मुस्कुराया था, किसी की मासूमियत उसके मोहब्बत को, कभी पा लेने का जुनून जो बनाया था। स्कूल उसकी मुलाकात की वजह बन गई, जो बिना कहे रोज जाया जाता था, देखकर मेरी बेताबी मेरी बेचैनी को, मेरे दोस्तों ने जो साथ निभाया था। एक दिन सोचा सब कह डालू, मगर हिम्मत न जुटा पाया था, बस उन्हें मैं देखता ही रहा, ये यह सिलसिला यूं ही जारी था। सब लगे थे इम्तिहान की तैयारियों में, मैं बस खयालों में ही खोया रहता था, एक दफा खत में दिल की बातें सब लिख डाला, खत के इंतजार में अब रातों को जागा जाता था। एग्जाम्स के दिनों में वह मेरे ही पीछे, इश्क़ ने जो थोड़ा सा साथ निभाया था, छुट्टियों ने बेचैनी से जकड़ा हुआ था मुझे, वो दूर होने का जो डर सताया था। घर के उसके परेशानियों ने शायद, मेरे इंतजार को " ना " करवाया था, मैं टूटा हुआ उदासियों को लिए, अपने जज्बात संभाल ना पाया था। उनकी मोहब्बत ने घेर

Parakh khubsurti ki...??

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  परख खूबसूरती की...? चलो चलें रिश्ते जोड़ आते हैं, किसी की खामियों को शौक से बताते हैं, कैसे तुमको सामने बैठना नज़राना , घरवाले कितने शान से सिखलाते हैं। बेशक हजार खामी हो बेटो में, बदसुरत एक बेटी कहलाती है, रंग तो सांवला सा ही था बचपन से ही, यह किस खूबसूरती की तलाश में आ जाते हैं। एक इम्तिहान फिर देना है चलो, तुमको नमूना पेश करना है चलो, हंसना नहीं होंठो को सील लो तुम, तुमको सामने ले जाना है चलो। देखो नजरे नीचे ही रखना, कुछ पूछे तो तुम ज्यादा न कहना, उनकी बातों पर घबराना नहीं, तुमसे गलतियां ना हो पाए ख्याल रखना। उनके आते ही नजरें जो उनकी मुझे चुभने लगती है, मेरे अंदर जो मैं हूं कहीं मुझसे सवाल करती है, कद छोटा है, थोड़ी सांवली, बहुत दुबली सी लड़की है, इतनी खामियां जब मुझ में निकाले जाते हैं। फोटो देखकर बेज्जती करने क्यों सामने आ जाते हैं, हंसते हुए चेहरे को यह एक दाग लगा जाते हैं, इनकी परख देखकर दिल में खयाल मेरे उमड़ता है, किसी की बेटी को यह सामान सा परख जाते हैं। कब तक चलेगी यह खूबसूरती की पहचान है, हजारों रिश्ते हर देश मे जो जोड़े जाते है, आईना देख मुस्कुराती थी जो खूबसूरती,  अब उ

Kabhi to pucho..?

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        कभी  तो पूछो..?? गमों को छुपा कर मुस्कराती सी हूं मै, आंसू के छलकने से घबराती सी हूं मै, उदासियो से जुड़ा है मेरा नाता, ये जहर के घूंट रोज़ पीती सी हूं मै। मैंने अपने निगाहों को खुश्क पाया है, भीड़ मे खुद को अक्सर तन्हा ही पाया है, होंठो पे मुस्कुराहट और आंखों से अश्क बहाया है, कभी तो पूछो ऐसा किसने बनाया है। हर रोज़ लड़ती हूं खुद से,  कहते कहते रुकती हूं खुद से, हारी सी जिंदगी है तू, आईने को देख कहती हूं खुद से। ये रोज़ की जंगे,ये रोज़ के कतरे, नाराज़ सी जिंदगी , बिना मंज़िल के रस्ते, कभी तो पूछो मै उदास सी क्यों लगती हूं, कभी तो पूछो मै इतना क्यों हस्ती हूं।  Shaikh Shabana

Jahez Ab nahi....!

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जहेज़ के नाम पर बहु आग में उतारी है, हमारे इस मुल्क में अब तक यह जुल्म जारी है, कदम बाहर कैसे निकालूं, घर की इज्जत की जंजीर बहुत भारी है। मां-बाप के जिगर के टुकड़े को लेते हैं, कहते हैं हमें जेवर नहीं मिला, हम जिंदगी भर जले यहां, पर हमारा मुकद्दर नहीं मिला। शादियां जेहमत कर गई है लालच जहेज़ की, बेटियों को तबाह कर गई लालच जहेज़ की, एक बाप की जिंदगी की कमाई को लाकर, कहते हैं "क्या लाई"लालच जहेज़ की। ज्यादा जो ले आई तो सर पर बिठा लिया, कम होते ही बाहर भगा दिया, लेकर जो निकली जिस्म की मिट्टी मैं बाहर, जहेज़ के लालची ने सारे आम कत्ल कर दिया। जहेज़ के नाम पर मौत अब कम नहीं, कभी अर्थी कभी डूबी वही, चलो जुट कर एक हो जाएं, जहेज़ के नाम पर आवाज उठाएं। बताए इन लालची लोगो को हम, ये बेटियां किसी से कम नहीं, पहचान अपनी आला रख कर, कहे हम एक साथ जहेज़ अब नही। photo credit  Syed Fahim Haidar Shaikh Shabana

Haseen thhe wo lamhat...!

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हसीन थे वह लम्हात...! खूबसूरत सी यादें, हसीन थे लम्हात, कागज की कश्ती थी, और नन्हे से विचार, एक मेरा यार था, और थी हमारी यारी, हाथ थाम कर चल रहे थे, मस्तियां खूब सारी । किसी दिन किसी पर ऐतबार हो गया था, एक अजनबी शख्स मेरा यार हो गया था, वह पहली क्लास वह पहला दोस्त, मेरी जिंदगी का पहला किताब हो गया था। शुरुआती दिनों में, मैं उसके घर था जाता , शाम बीताएं, मैं वहां से आता , दोनों खिलौने कार चलाते, एक दूसरे की कारों को हम खूब लड़ाते। कार्टून की दुनिया हमने बनाई थी, ख्वाब भी कुछ चंचल से बनाए थे, वह क्रिकेट के खिलाड़ी को, न्यूज़ पेपर से चुराए थे। साथ में करते थे स्कूल की छुट्टी, कभी-कभी स्कूल से भी भाग जाया करते थे, खेल कूद कर बागों में, कश्ती में पूरा दिन बिताया करते थे। गांव की मजबूरियों के कारण होना पड़ा अलग हमें, बिछड़ के अपने यार से हॉस्टल जाना पड़ा मुझे, वह देखता रहा मुझे, एक ही निगाह से, ठहरा हो जैसे अब भी वह पल, हमारी ही निगाह से। अनोखी थी वह हमारी यारी, अनोखा था वो मेरा यार, मेरी हर ज़रूरत को , बे झिझक पूरा करता मेरा यार। वो लम्हें बहोत याद आते है, आंखे बंद करता हूं,शरारतें याद आते